कावड़िया पहाड़ : ज्वालामुखी की चट्टानें या महाभारत कालीन कलाकारी


भारत की संस्कृति और पुरातत्व धरोहर अत्यंत प्राचीन मानी जाती है। भारत के विभिन्न राज्यों के जिलों में भारतीय संस्कृति और कला के अनोखे नजारे सामने आते रहे हैं। इस बार हम देवास जिले के अंतिम छोर पर पहुंचे हैं। जहां एक नही बल्कि सात पहाड़ पत्थर की चट्टानों के बने हुए हैं। देखने में ऐसा लगता है मानो किसी ने यह पत्थर व्यवस्थित ढंग से रखकर इन पहाडों का निर्माण किया है। यहां स्थित पत्थर आयताकार, त्रिकोण और विभिन्न आकारों में हैं। वहीं यहां एक प्राचीन हनुमानजी की मूर्ति भी है। वन विभाग ने इसे इको पर्यटन के रुप में स्थापित करने का प्रयास किया है। 
नर्मदा नदी के किनारे स्थित इस पहाड़ को कावड़िया पहाड़ कहा जाता है। इस पहाड़ के इतिहास की अलग अलग मान्यताएं और कहानियां है। 


ताया जाता है कि इन पत्थरों को महाभारत के समय बलशाली भीम ने यहां रखा था और इनके द्वारा यहां महल का निर्माण किया जाना था। लेकिन अभी तक ऐसे कोई ठोस प्रमाण सामने देखने को नही मिले हैं। 
वहीं विज्ञान की बातें मानी जाएं तो उक्त चट्टानों का निर्माण ज्वालामुखी से हो सकता है। ज्वालामुखी से निकले लावा में बेसाल्ट के कई समय तक जम जाने से इन चट्टानों का निर्माण हो सकता है। 
बहरहाल यहां जो भी मान्यताएं या इतिहास है लेकिन पहाड़ों की सुंदरता अत्यंत ही मनमोहक हैं जो किसी भी व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करती है।
पहाड़ से कृछ दुरी पर देवास के अंतिम छोर पर धाराजी नामक प्रसिध्द स्थान भी है। पूर्व में यहां पूजा अर्चना और स्नान का अत्यंत महत्व माना जाता रहा है लेकिन वर्तमान में धाराजी शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन के बाद विलुप्त हो चुकी है। अब यहां नर्मदा नदी का बैकवाटर है।